Pages

Monday, January 23, 2012

यह ‘बायोटेक्नोलॉजी रेग्युलेटरी अथारिटी ऑफ इंडिया बिल’ गलत उद्देश्य के लिए बनाया गया गलत बिल है
मान्यवर,
पिछले साल पहली जीएम खाद्द्य फसल को लेकर पूरे देश में जोरदार बहस छिड़ी। बीटी बैंगन के रूप में पहली जीएम (जेनटिक मोडिफाइड) खाद्य फसल को वर्ष2009  में केंद्र सरकार की परिनियमित इकाई (जीइएसी)ने व्यावसायिक खेती की अनुमति दे दी थी। लेकिन इस विवादास्पद खाद्य फसल पर चली देशव्यापी बहस को देखते हुए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री ने सतर्कता बरती और बीटी बैंगन पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि जब तक स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययनों से सार्वजनिक और व्यावसायिक रूप से यह स्थापित नहीं हो जाता कि इस फसल का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कोई दीर्घकालीन दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा और बैंगन की मौजूदा असीम विविधता को खतरा नहीं है और यह तकनीकी सुरक्षा सम्बंधित मापदंडों पर खरी नहीं उतरती, उसे अनुमति नहीं दी जायेगी। 
बी.आर.ए.आई. की उत्पत्ति
2003-04 में देश में पहली बार नेशनल बायोटेक्नोलाजी रेग्युलेटरी अथारिटी के रूप में एक स्वायत्त नियामक प्राधिकरण बनाने की बात उठी थी। इसकी सिफारिश कृषि मंत्रालय की तरफ से बनाये गये टास्क फोर्स के अध्यक्ष डा० एम० एस० स्वामीनाथन ने की थी। टास्क फोर्स ने बायोटेक्नोलाजी रेग्युलेटरी गठन के लिए कुछ आधारभूत सुझाव भी दिये थे। जैसे-किसी भी बायोटेक्नोलाजी रेग्युलेटरी नीति निर्धारण के लिए पर्यावरण, किसान वर्ग, सतत कृषि प्रणाली, स्वास्थ्य एवं पौष्टिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ में उपभोक्ता एवं राष्ट्र में व्यापार तथा जैव सुरक्षा के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्रालय के जैव प्रोद्यौगिकी विभाग ने वर्ष 2008 में पहली बार एन बी आर ए बिल प्रस्तुत किया और जनता से राय मांगी। इस बिल की प्रक्रिया और विषयवस्तु दोनों की कटु आलोचना हुई और विरोध हुआ। प्रस्तावित बिल का विरोध मुख्य रूप से गलत प्राथमिकता तय करने व जीएम फसलों को बढ़ावा देने वालों को ही नियामक बना देने की वजह से हुआ। सिविल सोसायटी ने तो बिल की प्रमुख खामियों पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखित रूप से अपना विरोध दर्ज कराया।
ब्राई का अगला प्रारूप वर्ष 2009 में तैयार किया गया, जिसके गुप्त दस्तावेज मार्च 2010 में लीक हो गये। इस बिल पर भी काफी हंगामा हुआ क्योंकि इसमें जीएम फसलों के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान किया गया था। इसे देखकर ऐसा मालूम हुआ कि इस बिल में सुधार की जगह और खतरनाक स्वरुप प्रदान कर दिया गया। इस प्रारूप में ऐसी धाराएँ शामिल थी जो अलोकतांत्रिक और गुपचुप तरीके से पर्याप्त वैज्ञानिक आधार के बिना और दुष्प्रभावों का व्यापक आंकलन किये बिना ही नियमों को शिथिल करके जीएम फसलों को जल्दी मंजूरी देने की वकालत कर रहे थे।
हालांकि अभी कुछ समय पहले ही राज्य सरकारों की सत्ता को मान्यता दी गई है कि अब वे अपने राज्य में जीएमओ (जैव परिवर्धित फसलों) के स्थलीय परीक्षणों को मंजूरी देने और न देने का फैसला खुद ले सकते हैं। ऐसा तब हुआ जब बिहार के मुख्यमंत्री ने बिना राज्य सरकार को जानकारी दिये और बिना उसकी सहमति लिए बिहार में किये जा रहे स्थलीय परीक्षणों का विरोध किया। इससे पहले केरल सरकार ने अपने राज्य के लिए एक जीएम फ्री पॉलिसी की घोषणा कर दी थी जिसे बाद में संसद में भी उचित कदम माना गया।
वर्तमान बी.आर.ए.आई. बिल
यह बिल 22 नवंबर 2011 को लोकसभा की कार्यवाही की दैनिक सूची में चिन्हित है। यहाँ यह बताना जरूरी है कि जिस समय यह बिल पेश करने की तैयारी चल रही है, बिहार, केरल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल जैसे 7 राज्य जी एम फसलों के परिक्षण को मना कर चुके हैं। अब देश भर के हजारों गांव खुद को जीएम मुक्त घोषित कर रहे हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है हमारे लिए इस बिल से जुडना?
• ऐसा लगता है कि हमें कृषि तकनीकों से जुड़ी बहस में शामिल होने की आवश्यकता है। दूसरी अन्य तकनीकों के विपरीत, ये तकनीकें हमारे ऊपर ज्यादा असर डालने जा रही हैं। वो भी सिर्फ इस कारण से कि ज्यादातर जमीन कृषि के अंदर आती है और देश के ज्यादातर लोगों की रोज़ी रोटी करशी से जुडी हुई है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो खाना खाते हैं वह भी कृषि से ही मिलता है। ऐसा लगता है कि अब हमें ट्रांसजेनिक्स जैसी तकनीकों से जुड़ने की जरूरत है।
• यह भी ध्यान रखने योग्य है कि हमारा भोजन असुरक्षित होता जा रहा है। जीएम फसलों व खाद्यान्न के आने से उसके जहरीले होने की संभावना भी बढ़ गई है। इसलिए इस कानूनका एक हीं उद्देश्य होना चाहिए की भारतीयों के स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को रोकना। इसीलिए इस बिल के पेश किये जाने का विरोध करने की जरूरत है।
बिल के महत्वपूर्ण विन्दु जिनपर मुख्य रूप से आपत्ति है
Ø  यह बिल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा लाया जा रहा है जिससे ‘कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ पैदा हो रहा है, चूँकि यह वही मंत्रालय है जो आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दे रहा है। ऐसे में क्या प्रोत्साहक हीं नियामक होंगे?
Ø  इस नियामक बिल का मुख्य उद्देश्य प्रौद्योगिकी का सुरक्षित इस्तेमाल और उसे बढ़ावा देना है। किसी भी तकनीक को प्रोत्साहित करने के लिए एक कानून की जरूरत नहीं होती।कानून सिर्फ उसी परिस्थिति में बनाया जाता है जब स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं जीविका को आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के खतरे से बचाना हो। परन्तु ऐसा  कुछ भी इस बिल में नहीं कहा गया है।
Ø  इस बिल का वास्तव में परिणाम एवं प्रभाव कई अधिनियमों पर पड़ता है और साथ हीं उन अधिनियमों  के अधिकार क्षेत्र को भी प्रभावित करता है, जैसे पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम, वनाधिकार अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम, खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, दवा एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, पंचायती राज अधिनियम, नगरपालिका अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम आदि। अतः जो बिल इतने व्यापक स्तर पर इतने सारे अधिनियमों को प्रभावित करने की क्षमता रखता हो उसके लिए उतनी हीं गंभीरता से व्यापक बहस होनी चाहिए थी, जो अब तक देखने को नहीं मिला।
Ø  यह बिल भारतीय संविधान के संघीय सिधान्तों के भी खिलाफ है तथा पंचायती राज संस्थाओं को भी कमजोर बनाता है। यह बिल हमारे संघीय ढाँचे तथा पंचायती राज जैसी संस्थाओं के कृषि, स्वास्थ्य एवं प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण को भी गौण करता है तथा हर निर्णय सिर्फ एवं सिर्फ एक केंद्रीय संस्था में हीं निहीत करने की बात करता है। 
साथ हीं
1.गलत उद्देश्यों के साथ गलत मंत्रालय द्वारा पेश किया जाना
2. विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्रालय के अधीन हितों के टकराव का विरोध
3.कृषि व स्वास्थ्य मामले में राज्य सरकारों के अधिकारों पर अतिक्रमण
4. मूल्यांकन की कोई आवश्यकता नहीं
5. लोकतांत्रिक कार्य शैली का अभाव-जन सहभागिता की कोई व्यवस्था नहीं
6. पारदर्शिता के लिए कोई व्यवस्था नहीं–सूचना पाने वाले नागरिकों के अधिकार का अतिक्रमण बेहद दुर्भाग्यपूर्ण
7. तमाम संस्थाएं मौजूद लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया केन्द्रीयकृत व संकीर्ण
8. दंतहीन पर्यावरण मूल्यांकन पैनल
9.निर्णय लेने के मापदंडों को शिथिल करना
10. जैव सुरक्षा व जोखिमों से समझौता करना–खुली हवा में हो रहे परीक्षणों पर अंकुश लगाने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई है
11. स्वतंत्र परीक्षण बिल का हिस्सा नहीं हैं
12. कोई जोखिम प्रबंधन तंत्र का न होना
13. हितों के टकराव को पूरी तरह दूर न करना
14. पैनल की धाराओं का कमजोर होना
15.जैव प्रोद्यौगिकी नियामक अपीलीय प्राधिकरण कमजोर और लोगों की न्याय व्यवस्था से दूर करनेवाली
16. दूसरे कानूनों पर अतिक्रमण का असर
17. जीएमओ आयात पर खामोश रहना आदि।


इस बिल पर अधिक जानकारी एवं अन्य खामियों को जानने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ - http://indiagminfo.org/?page_id=82 हमें खुशी होगी यदि और कुछ विशेष जानकारी के लिए एवं किसी सम्बंधित दस्तावेज के लिए आप हमें संपर्क करते हैं। यह बिल गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है. अतः हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप कृपया २२ नवंबर २०११ को प्रातः १० बजे से पहले-पहले माननीय लोकसभा अध्यक्ष एवं महासचिव को लिखित रूप से इस बिल की introduction के विरुद्ध अपना विरोध पत्र अवश्य भेजें।


अगर किन्ही परिस्थितियों में यह बिल फिर भी पेश हो जाता है तो कृपा कर जरूर सुनिश्चित करें कि तब इसे कम से कम कृषि/स्वास्थ्य/पर्यावरण और विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी के संयुक्त समिति में अवश्य भेजा जाये।
निवेदक :
राष्ट्रीय आशा गठबन्धन                                                                         जी एम मुक्त भारतीय गठबन्धन
खुदरा कारोबार में एफडीआइ को किसानों, उपभोक्ताओं और निर्माताओं, तीनों के लिए घाटे का सौदा मान रहे है देविंदर शर्मा

ऐसे समय जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुदरा कारोबार में एफडीआइ खोलने के फैसले को देशहित में बताते हुए इसे वापस लेने से इंकार कर रहे है, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की राय इससे उलट है। 26 नवंबर को उन्होंने ट्वीट किया-अपनी पसंदीदा स्थानीय दुकान से सामान खरीदकर छोटे व्यापारियों का समर्थन करे। ओबामा अपने देश के हित की बात कर रहे है, जबकि मनमोहन सिंह अमेरिकी हितों को सुरक्षित करने की। मनमोहन सिंह की यह दलील तथ्यों पर खरी नहीं उतरती कि रिटेल एफडीआइ से हमारे देश को फायदा होगा, ग्रामीण ढांचागत सुविधाओं में सुधार होगा, कृषि उत्पादों की बर्बादी कम होगी और हमारे किसान अपनी फसल के बेहतर दाम हासिल कर सकेंगे। परेशानी की बात यह है कि वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दलीलों का कोई आर्थिक आधार नहीं है। इनकी महज राजनीतिक उपयोगिता है। इनसे यही पता चलता है कि सत्ताधारी दल के राजनीतिक एजेंडे को न्यायोचित ठहराने के लिए आर्थिक तथ्यों को किस तरह तोड़ा-मरोड़ा और गढ़ा जा सकता है।
मल्टी ब्रांड रिटेल के पक्ष में सबसे बड़ी दलील यह है कि इससे सन 2020 तक एक करोड़ रोजगार पैदा होंगे। इस दावे के पीछे कोई तर्क नहीं है। अमेरिका में रिटेल कारोबार में वालमार्ट का वर्चस्व है। इसका कुल कारोबार चार सौ अरब डॉलर [लगभग 20 लाख करोड़ रुपये] है, जबकि इसमें महज 21 लाख लोग काम करते है। विडंबना है कि भारत का कुल रिटेल क्षेत्र भी 20 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि इसमें 4.40 करोड़ व्यक्ति काम करते है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय रिटेल कहीं बड़ा नियोक्ता है और वालमार्ट सरीखे विदेशी रिटेलरों को भारत में बुलाने से करोड़ों लोगों का रोजगार छिन जाएगा। इंग्लैंड में दो बड़ी रिटेल चेन टेस्को और सेंसबरी है। दोनों ने पिछले दो वर्षो में 24,000 रोजगार देने का वायदा किया था, जबकि इस बीच इन्होंने 850 लोगों को नौकरी से निकाल दिया।
आनंद शर्मा का कहना है कि रिटेल एफडीआइ से किसानों की आमदनी 30 प्रतिशत बढ़ जाएगी। इससे बड़ा झूठ कुछ हो ही नहीं सकता। उदाहरण के लिए अगर वालमार्ट किसानों की आमदनी बढ़ाने में सक्षम होती तो अमेरिकी सरकार को यूएस फार्म बिल 2008 के तहत 307 अरब डॉलर [करीब 15.35 लाख करोड़ रुपये] की भारी-भरकम सब्सिडी नहीं देनी पड़ती। इनमें से अधिकांश सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन के ग्रीन बॉक्स में जोड़ी जाती है। अगर ग्रीन बॉक्स सब्सिडी वापस ले ली जाती है तो अमेरिकी कृषि का विनाश हो जाएगा। 30 धनी देशों के समूह की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। इन देशों में 2008 में 21 फीसदी और 2009 में 22 फीसदी सब्सिडी बढ़ गई है। केवल 2009 में ही इन औद्योगिक देशों ने 12.6 लाख करोड़ रुपये की कृषि सब्सिडी दी है। इसके बावजूद यूरोप में हर मिनट एक किसान खेती छोड़ देता है। यह इसलिए हो रहा है कि वहां किसानों की आय लगातार गिर रही है। केवल फ्रांस में 2009 में किसानों की आमदनी 39 फीसदी गिर गई है।
सरकार की तीसरी दलील है कि बड़ी रिटेल कंपनियां बिचौलियों को हटा देती हैं, जिस कारण किसानों को बेहतर कीमत मिलती है। एक बार फिर यह झूठा दावा है। अध्ययनों से पता चलता है कि बीसवीं सदी के पूर्वा‌र्द्ध में अमेरिका में प्रत्येक डॉलर की बिक्री पर किसान को 70 सेंट बच जाते थे, जबकि 2005 में किसानों की आमदनी महज 4 फीसदी रह गई है। यह वालमार्ट और अन्य बड़े रिटेलरों की मौजूदगी में हुआ है। दूसरे शब्दों में जैसी की आम धारणा है, बड़े रिटेलरों के कारण बिचौलिए गायब नहीं होते, बल्कि बढ़ जाते है। नए किस्म के बिचौलिए पैदा हो जाते है जैसे गुणवत्ता नियंत्रक, मानकीकरण करने वाले, सर्टिफिकेशन एजेंसी, प्रोसेसर, पैकेजिंग सलाहकार आदि इसी रिटेल जगत के अनिवार्य अंग होते है और ये सब किसानों की आमदनी में से ही हिस्सा बांटते है। यही नहीं, बड़े रिटेलर किसानों को बाजार मूल्य से भी कम दाम चुकाते है। उदाहरण के लिए इंग्लैंड में टेस्को किसानों को चार फीसदी कम मूल्य देती है। सुपरमार्केटों के कम दामों के कारण ही स्कॉटलैंड में किसान ‘फेयर डील फूड’ संगठन बनाने को मजबूर हुए है।
चौथी दलील यह है कि रिटेल एफडीआइ छोटे व मध्यम उद्योगों से 30 प्रतिशत माल खरीदेंगे और इस प्रकार भारतीय निर्माताओं को लाभ पहुंचेगा। यह लोगों को भ्रमित करने वाली बात है। सच्चाई यह है कि विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत भारत किसी भी बड़े रिटेलर को कहीं से भी सामान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यह विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ है और कोई भी सदस्य देश इसका उल्लंघन कर जीएटीटी 1994 की धारा 3 या धारा 11 के तहत निवेश प्रतिबंध झेलने की मुसीबत मोल नहीं ले सकता। विश्व व्यापार संगठनों के प्रावधानों का इस्तेमाल कर मल्टी ब्रांड रिटेल सस्ते चीनी उत्पादों से बाजार पाट देंगे और छोटे भारतीय निर्माताओं को बर्बादी के कगार पर पहुंचा देंगे। निवेश नियमों की आड़ में रिटेलर भारत में खाद्यान्न भंडारण व परिवहन आदि का बुनियादी ढांचा भी खड़ा करने नहीं जा रहे है। नियम के अनुसार कंपनियों के मुख्यालय में होने वाला खर्च भी भारत में निवेश में जुड़ जाएगा। इस प्रकार भारत में एक भी पैसा निवेश किए बिना ही रिटेल एफडीआइ 50 प्रतिशत से अधिक निवेश कर चुके है। पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के अध्ययन ‘वालमार्ट और गरीबी’ से पता चलता है कि अमेरिका के जिन राज्यों में वालमार्ट के स्टोर अधिक है उनमें गरीबी दर भी अधिक है। यह ऐसे देश के लिए खतरे की घंटी है जिसकी आधी से अधिक आबादी गरीबी, भुखमरी और मलिनता में जीवन बिता रही है।

लाखों किसानों की आत्महत्यायों के प्रेजेंटेसन के लिए क्लिक करें

111124 farmer suicides presentation

  • 1. FARMER SUICIDES AND AGRARIAN DISTRESS Alliance for Sustainable and Holistic Agriculture
  • 2.  
  • 3. States Male Female Total 1 Andhra Pradesh 2130 395 2525 2 Arunachal Pradesh 18 0 18 3 Assam 352 17 369 4 Bihar 91 4 95 5 Chhattisgarh 778 348 1126 6 Goa 15 0 15 7 Gujarat 458 65 523 8 Haryana 261 36 297 9 Himachal Pradesh 59 2 61 10 Jammu & Kashmir 16 2 18 11 Jharkhand 150 23 173 12 Karnataka 2128 457 2585 13 Kerala 797 98 895 14 Madhya Pradesh 973 264 1237 15 Maharastra 2947 194 3141 16 Manipur 0 4 4 17 Meghalaya 15 1 16 18 Mizoram 5 0 5 20 Odisha 145 17 162 21 Punjab 80 0 80 22 Rajasthan 351 39 390 23 Sikkim 19 0 19 24 Tamil Nadu 442 99 541 25 Tripura 46 12 58 26 Uttar Pradesh 432 116 548 27 Uttarakhand 33 6 39 28 West Bengal 800 193 993   Total States 13541 2392 15933
  • 4. 29 Union Territories 0 30 Andaman & Nicobar 8 0 8 31 Chandigarh 0 0 0 32 Dadar and Nagar Haveli 10 0 10 33 Daman & Diu 0 0 0 34 Delhi (UT) 9 0 9 35 Lakshadweep 0 0 0 36 Puducherry 4 0 4   Total UTs 31 0 31   Total Farmer Suicides 13572 2392 15964
  • 5. Suicides in 6 districts of Vidarbha Year As per NCRB As per Vasantrao Naik Shetkari Swalabhan Mission and Crime Records 2001 116 59 2002 254 105 2003 328 143 2004 456 441 2005 666 431 2006 1886 1215 2007 1556 1160 2008 1680 1080 2009 1954 991 2010 2023 1060 2011 N.A. 680      
  • 6. 95 suicides in 1 month in 6 districts, A.P. District No of Suicides Adilabad 18 Medak 13 Karimnagar 13 Khamma 17 Mahaboobnagar 10 Ananthapur 24 Total 95
  • 7. No. of suicides in Oct-Nov 2011, A.P. District October November Total Adilabad 16 11 27 Ananthapur 25 3 28 Karimnagar 11 6 17 Khammam 14 8 22 Kurnool 6 1 7 Mahabubnagar 8 16 24 Medak 7 9 16 Nalgonda 3 0 3 Prakasam 0 1 1 Rangareddy 1 0 1 Srikakulam 1 0 1 Warangal 2 8 10 Total 94 63 157
  • 8. List of Genuine Farmer Suicides by Govt of A.P. District 1997 1998 1999 2000 2001 2002 2003 2004 2005 2006 2007 2008 2009 2010 2011 Total Adilabad 9 18 23 25 25 25 2 68 60 83 48 42 18 6 0 452 Ananthapur 9 9 27 35 60 22 13 59 70 65 90 95 40 41 19 654 Chittor 0 6 2 4 1 4 7 33 21 26 24 17 9 0 0 154 East Godavari 0 1 0 0 1 0 0 4 2 3 2 1 0 8 2 24 Guntur 5 12 1 4 5 1 4 69 24 31 22 36 3 20 19 256 Kadapa 0 0 0 0 1 5 3 18 17 9 26 21 10 4 1 115 Karimnagar 12 15 15 36 38 36 11 96 73 48 55 64 42 0 0 541 Khammam 1 7 0 9 4 7 2 37 23 22 7 12 2 0 0 133 Krishna 1 0 2 0 1 0 1 23 13 6 4 2 4 6 2 65 Kurnool 13 6 3 6 11 7 1 77 64 72 68 66 59 22 9 484 Mahbubnagar 4 15 20 9 22 17 4 112 57 35 30 29 17 4 0 375 Medak 2 1 5 5 11 25 17 92 45 30 28 32 32 21 7 353 Nalgonda 10 9 8 15 19 11 34 53 52 48 13 43 17 11 0 343 Nellore 0 0 0 1 0 2 7 6 7 1 2 2 3 0 0 31 Nizamabad 1 3 6 8 24 9 8 64 27 12 17 7 10 0 0 196 Prakasham 0 4 4 1 1 0 0 44 9 8 10 8 0 9 6 104 Rangareddy 0 4 2 1 6 5 2 56 40 19 21 18 25 0 0 199 Srikakulam 0 0 0 1 0 0 0 4 1 0 0 1 1 2 1 11 Vishakapatnm 0 0 0 0 0 0 0 9 5 2 1 1 2 3 0 23 Vizianagaram 0 0 0 0 0 0 0 1 0 0 0 0 0 1 0 2 W. Godavari 0 0 0 0 0 0 0 8 0 0 1 1 1 0 0 11 Warangal 46 78 79 95 97 77 27 112 45 32 24 11 2 0 0 725 Total 113 188 197 255 327 253 143 1045 655 552 493 509 297 158 66 5251
  • 9. Main Causes Rising costs of cultivation; high dependence on external inputs Unremunerative prices – do not cover costs of cultivation, let alone rising living costs Unsustainable cropping patterns and production practices Trade liberalization and export-import policies Lack of support systems like credit, insurance, markets, storage, farmer collectives Neglect of rainfed agriculture
  • 10. Our Demands Immediate Measures Immediate compensation for crop failure Remunerative prices, direct procurement from farmers Modify export/import policies and tariffs in favour of Indian farmers Provide ex-gratia and loan repayment support for all families of farmer suicides in time-bound manner
  • 11. Our Demands Addressing Root Causes Price Compensation system for all food crops: when MSPs or market prices are less than Target Price (Cost of Cultivation + 50%), the difference should be paid directly to farmers Guarantee minimum living incomes to all farmers Promote sustainable agriculture which reduces cost of cultivation and crop risk Comprehensive rainfed agriculture mission based on diverse cropping systems, protective irrigation and livestock systems
  • 12. Our Demands Addressing Root Causes (contd) Bank credit to all farmers with adequate scale of finance Effective crop insurance to cover all crops and all farmers Inclusion of tenant farmers in all support systems
  • 13. Our Demands Parliamentarians should demonstrate their serious intent of addressing agrarian crisis Day-long joint session of Parliament to discuss farmer suicides and agrarian crisis Constitute a Parliamentarians’ Forum on Agrarian Distress to address the causes of the crisis

Friday, January 20, 2012

ग्लोबल सोसल नेटवर्किंग  इन्टरनेट की आज़ादी का गला घोंटने के खिलाफ आवाज बुलंद करें 

वैश्विक आर्थिक व वित्तीय संकट झेल रहा अमरीका अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने पर आमादा हो गया है. ऑनलाइन चोरी रोकने के नाम पर इन्टरनेट पर चल रहे सोसल नेटवर्किंग पर रोक लगाने और उसके यूजर्स को तंग करने की यह गहरी साजिश है. अरब देशों में  सोसल नेटवर्किंग के माध्यम से शुरू होने वाली क्रांति से शायद अमरीकी साम्राज्यवाद घबड़ा गया है. यह सच भी है. जब समूची विश्व पूंजीवादी दुनिया आर्थिक संकटों से हिल रही हो तो पूंजीवादी दुनिया के सरगना का चिंतित होना स्वाभाविक है. परंतु, सवाल यह है कि क्या हम अपनी आजादी का चुपचाप क़त्ल होते देखना पसंद करेंगे ? नहीं न! तो आइए, इसके विरोध में आवाज़ बुलंद करें.
 

 
 
 
 

Friday, January 13, 2012

JUST IMAGINE WHAT IS THE VALUE OF DEMOCARCY IN A SOCIETY WHERE FINANCIAL OLIGARCHY RULES THE ROOST!! 

ये आंकड़े क्या कहते हैं ?

१) भारत के लगभग आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं!
२) दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में एक तिहाई संख्या भारतीय बच्चों की है।
३) देश में हर तीन सेकंड में एक बच्चे की मौत हो जाती है।
४) देश में प्रतिदिन लगभग 10,000 बच्चों की मौत होती है, इसमें लगभग 3000 मौतें कुपोषण के कारण होती हैं।
५) सिर्फ अतिसार के कारण ही प्रतिदिन 1000 बच्चें की मौत हो जाती है।
६) भारत के पाँच वर्ष से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम है।
७) 15 फीसदी बच्चे अपनी लम्बाई के लिहाज से बहुत दुबले हैं।
८) 43 फीसदी (लगभग आधे) बच्चों का वजन सामान्य से बहुत कम है।
९) हर 1000 में से 57 बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं।
१०) भारत में प्रति वर्ष 74 लाख कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं - जो कि दुनिया में सबसे अधिक है।
११) विश्व भर में 97 लाख बच्चे पाँच साल की उम्र पूरी करने से पहले ही मर जाते हैं, इनमें 21 लाख (यानी लगभग 21 प्रतिशत) बच्चे भारत के हैं।
१२) हर 4 में से 1 लड़की और हर 10 में से 1 लड़का प्राथमिक शिक्षा से वंचित है।
१३) गर्भ या प्रसव के दौरान आधी महिलाओं को उचित देख-भाल नहीं मिलती।
१४) देश की 50 प्रतिशत महिलाओं और 80 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है।
१५) देश का हर चौथा आदमी भूखे पेट रहता है। दुनिया भर में भूखे रहने वालों का एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है।
१६) पिछले 4-5 सालों में अधिकतर खाद्य पदार्थों की कीमतों में 50 से 100 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है।
१७) 77 प्रतिशत भारतीय 20 रुपये रोज से कम पर गुजारा करते हैं।
१८) देश की केन्द्र सरकार अपने खर्च का महज 2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 2 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है। इसकी तुलना में सुरक्षा पर 15 प्रतिशत खर्च किया जाता है।
१९) संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के अनुसार दुनिया में अब लगभग 1 अरब से अधिक लोग भुखमरी का शिकार हैं।
क्या ऐसे समाज की कल्पना हमने की थी?
आइये अपने सपने की समाज व्यवस्था बनाने के लिए कुछ करें ........

Thursday, January 12, 2012

भारत में ४२ फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार
  आखिर कौन दोषी है इसके लिए? सरकार या यह पूरी पूँजीवादी व्यवस्था?  

पूंजीवादी व्यवस्था में होने वाला विकास ऐसा ही होता है. एक ध्रुव पर अमीरी और दूसरे ध्रुव पर कंगाली और दारिद्रय का साम्राज्य. पूँजीवादी विकास का आम नियम है केन्द्रीकरण जिसका मतलब है मेहनतकशों का सम्पतिहरण और स्वत्वहरण. यह इसी का नतीजा है कि ८-९ फीसदी के ग्रोथ रेट से विकास कर रही अर्थव्यवस्था में आम अवाम कुपोषण से मर रहा है.
  

Friday, January 6, 2012

नमस्कार !

उम्मीद है कि ब्लॉग की दुनिया में स्वागत होगा. जल्द ही अपने विचारों के साथ मैं हाज़िर होऊंगा. सभी को एक बार फिर नमस्कार और नये साल की बधाई !!!